Sunday, 25 October 2015

स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टमों की जानकारी

स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टमों की जानकारी

हम कई बार स्मार्टफोन शब्द पढ़ते हैं। आम आदमी स्मार्टफोन का अर्थ अधिक फीचर वाला फोन समझता है जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। स्मार्टफोन किसी हाइ-ऍण्ड मोबाइल फोन को कहा जाता है। एक ऐसा बड़ी कलर स्क्रीन वाला मोबाइल फोन जिसमें कम्प्यूटर जैसी उच्चस्तरीय क्षमतायें एवं उन्नत फीचर हों तथा एक सुपरिभाषित (वैल डिफाइंड) ऑपरेटिंग सिस्टम हो। स्मार्टफोन हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर दोनों ही स्तर पर बेसिक फोन से उन्नत होता है। हार्डवेयर की दृष्टि से इसमें मेमोरी कार्ड, कैमरा, ब्ल्यूटुथ जैसे सामान्य फीचर तो होते हैं ही साथ में तेज प्रोसैसर, अधिक रैम, हाइ रिजॉल्यूशन डिस्पले, जीपीऍस नेवीगेशन तथा मोशन सेंसर जैसी आधुनिक फीचर भी होते हैं। सॉफ्टवेयर के मामले में जहाँ इसमें कम्प्यूटर की तरह एक ऑपरेटिंग सिस्टम होता है वहीं इसके फंक्शनों को ऍप्लिकेशनों की सहायता से बढ़ाया जा सकता है।


आजकल अधिकतर स्मार्टफोन टचस्क्रीन युक्त होते हैं। टचस्क्रीन फोन वेब सर्फिंग के लिये बेहतर होते हैं साथ ही बड़ी स्क्रीन के कारण वीडियो प्लेबैक भी बेहतर होता है। अधिकतर नये स्मार्टफोन 3जी सुविधायुक्त होते हैं जिसके द्वारा उनमें तेज गति इण्टरनेट तथा वीडियो कॉल/चैट आदि का आनन्द लिया जा सकता है। आजकल ऍण्ड्रॉइड स्मार्टफोनों तथा आइफोन के बीच कड़ी प्रतिद्वन्दिता है। ऍण्ड्रॉइड में सैमसंग के मॉडल सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। सैमसंग गैलैक्सी ऍस 2 उस समय  ( 2011 ) का आधुनिकतम एवं सबसे उन्नत स्मार्टफोन है जो कि ऍपल के आइफोन 4 को कड़ी टक्कर दे रहा था।

प्रचालन तन्त्र (ऑपरेटिंग सिस्टम)
किसी भी कम्प्यूटिंग डिवाइस के कार्य करने के लिये उसमें एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म चाहिये होता है जिसे प्रचालन तन्त्र (ऑपरेटिंग सिस्टम) कहते हैं। स्मार्टफोन में मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। वैसे तो कई स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम हैं लेकिन हम कुछ मुख्य सिस्टमों की ही बात करेंगे। वर्तमान में प्रचलित कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित हैं।


सिम्बियन
सिम्बियन आरम्भिक समय के ऑपरेटिंग सिस्टमों में से है। यह सिम्बियन लिमिटेड द्वारा शुरु किया गया था जिसे 2008  में नोकिया ने अधिगृहीत कर लिया तथा उसने 2009 में सिम्बियन फाउण्डेशन नामक गैर-लाभकारी संगठन बनाया जिसका काम सिम्बियन प्लेटफॉर्म का विकास था। यह कुछ समय पहले तक सबसे लोकप्रिय स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम था। नोकिया, सैमसंग तथा ऍलजी आदि के स्मार्टफोनों में जहाँ इसका S60 नामक यूजर इण्टरफेस प्रयुक्त होता था वहीं सोनी ऍरिक्सन वालों में UIQ, पहले सिम्बियन बटनों वाले फोन हेतु डिजाइन किया गया था बाद में S60 v5 के बाद टचस्क्रीन के लिये बने इण्टरफेस आये। बाद में सिम्बियन ओऍस तथा ऍस६० के आधार पर सिम्बियन प्लेटफॉर्म का निर्माण हुआ।

नोकिया के सिम्बियन युक्त स्मार्टफोन सबसे लोकप्रिय थे। ऍण्ड्रॉइड नामक नये मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम के आने पर धीरे-धीरे सैमसंग, ऍलजी आदि ने सिम्बियन को छोड़ दिया। कुछ समय पहले तक सिम्बियन सर्वाधिक प्रचलित स्मार्टफोन ओऍस था। एक समय यह सबसे ऍडवांस स्मार्टफोन ओऍस था परन्तु टचस्क्रीन यूजर इण्टरफेसों के आने पर विशेषकर आइओऍस तथा ऍण्ड्रॉइड की सफलता ने इसे आउटडेटिड बना दिया।

फरवरी 2011 में सिम्बियन युक्त स्मार्टफोन बनाने वाली अन्तिम कम्पनी नोकिया ने भी माइक्रोसॉफ्ट से गठबन्धन कर लिया तथा 2012 से वह सिम्बियन वाले हैण्डसैट बनाने बन्द कर देगा। आगे से वह माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ फोन नामक ऑपरेटिंग सिस्टम युक्त स्मार्टफोन बनायेगा। इस प्रकार सिम्बियन का स्मार्टफोन के रुप में भविष्य समाप्त हो चुका है।

सिम्बियन ऑपरेटिंग सिस्टमों के कुछ संस्करणों में आंशिक हिन्दी प्रदर्शन समर्थन है।


विण्डोज़ मोबाइल/विण्डोज़ फोन
विण्डोज़ मोबाइल माइक्रोसॉफ्ट का मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका पहला संस्करण लगभग 2000 में आया। इस ओऍस युक्त हैण्डसैट बनाने वाली कम्पनियों में ऍचटीसी, आइमेट, सैमसंग, ऍलजी आदि शामिल थी। यह ऑपरेटिंग सिस्टम सिम्बियन के समान्तर चलता रहा पर उसकी तरह मुख्यधारा का ओऍस कभी न बन पाया। इसके पुराने संस्करणों का इण्टरफेस तथा फीचर विण्डोज़ के डैस्कटॉप संस्करण जैसी थी जिसमें नोटपैड, वर्ड तथा इण्टरनेट ऍक्सप्लोरर जैसे अनुप्रयोग मौजूद थे। इन कारणों से यह उस समय गीकों का प्रिय स्मार्टफोन ओऍस था। बाद में विण्डोज़ मोबाइल की लोकप्रियता एवं मार्केट शेयर साल दर साल घटता गया।

इसके संस्करण 4, 6.0 था 6.1 में हिन्दी समर्थन हेतु आयरॉन्स हिन्दी सपोर्ट नामक एक टूल उपलब्ध है जिसमें हिन्दी कीबोर्ड भी शामिल है।

2010 में जारी हुये संस्करण ७ से माइक्रोसॉफ्ट ने अपने मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम को नये सिरे से बनाया तथा इसका नाम बदलकर “विण्डोज़ फोन” कर दिया। इसके इण्टरफेस में भी आमूल-चूल परिवर्तन किया गया तथा मैट्रो यूआइ नामक नया यूजर इण्टरफेस आया। विण्डोज़ मोबाइल के लिये बने सॉफ्टवेयर इसमें नहीं चलते। इस दौरान आइफोन तथा ऍण्ड्रॉइड छा चुके थे। विण्डोज़ फोन अभी अपना स्थान बनाने के लिये संघर्ष कर रहा है।
विण्डोज़ फोन में हिन्दी समर्थन नहीं है।


आइओऍस
आइओऍस ऍपल के आइफोन नामक स्मार्टफोन में प्रयुक्त होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह २००७ में आइफोन के साथ जारी हुआ। इसका आरम्भिक नाम आइफोन ओऍस था जो कि मैक ओऍस से निकला था। आइफोन को टचस्क्रीन स्मार्टफोनों का दौर लाने के लिये जाना जाता है। आइफोन ओऍस अपने सरल, यूजर फ्रेंडली इण्टरफेस तथा ऍप्लिकेशनों की प्रचुरता के चलते लोकप्रिय हुआ। बाद में ऍपल के ही उत्पाद आइपैड ने टैबलेट कम्प्यूटरों (स्लेट) का दौर चलाया। आइपैड के अलावा यह ओऍस ऍपल के आइपॉड टच नामक म्यूजिक प्लेयर में भी प्रयुक्त होता है इसलिये ऍपल ने कुछ समय बाद जून 2010 में इसका नाम बदलकर आइओऍस कर दिया। ऍपल के आइओऍस युक्त उत्पादों को आइओऍस डिवाइस कह दिया जाता है। यद्यपि आइओऍस में तथा इसके डिवाइसों में कुछ कमियाँ हैं (खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में) परन्तु इण्टरफेस, ऍप्लिकेशनों तथा ऍपल की हाइप के चलते ये डिवाइस काफी लोकप्रिय हैं। आइओऍस केवल ऍपल के उत्पादों में ही प्रयुक्त होता है। पहले आइओऍस में थर्ड पार्टी ऍप्लिकेशन का आधिकारिक समर्थन नहीं था, उस समय जेलब्रेकिंग के जरिये इसमें थर्ड पार्टी ऍप्स इंस्टाल की जाती थी।

आइओऍस की एक अच्छी बात ये है कि इसमें हिन्दी प्रदर्शन का पूर्ण समर्थन है। हिन्दी लिखने के लिये कुछ कामचलाऊ औजार हैं पर पूर्ण हिन्दी कीबोर्ड नहीं है।


ऍण्ड्रॉइड
अक्तूबर 2003 में ऍण्डी रुबिन द्वारा ऍण्ड्रॉइड इंक॰ की स्थापना की गयी थी जिसे अगस्त 2004 में गूगल द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया। नवम्बर 2007 में गूगल ने ओपन हैण्डसैट अलायंस बनाया जिसकी देख-रेख में ऍण्ड्रॉइड का विकास चल रहा है। ऍण्ड्रॉइड लिनक्स कर्नल पर आधारित है। इसके मुक्त स्रोत होने के चलते सैमसंग, ऍलजी, मोटोरोला आदि सहित बहुत सी कम्पनियाँ ऍण्ड्रॉइड स्मार्टफोन बना रही हैं। टैबलेट कम्प्यूटरों का दौर चलने के बाद शुरु में फोन वाला ओऍस ही उनमें प्रयुक्त हुआ पर बाद में टैबलेट के लिये हनीकॉम्ब नामक अलग से संस्करण निकाला गया जिसका इण्टरफेस बड़ी स्क्रीन के हिसाब से बनाया गया है। ऍप्लिकेशनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है तथा आइओऍस के बाद यह दूसरे क्रमांक पर है। ऍण्ड्रॉइड आइओऍस को कड़ी टक्कर दे रहा है। वर्तमान में ऍण्ड्रॉइड सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला स्मार्टफोन ओऍस है। ऍण्ड्रॉइड में हनीकॉम्ब वाले संस्करण मुक्त स्रोत नहीं हैं।

ऍण्ड्रॉइड में अभी तक हिन्दी प्रदर्शन समर्थन नहीं है। यद्यपि सैमसंग के गैलैक्सी सीरीज तथा सोनी ऍरिक्सन के ऍक्सपेरिया सीरीज के ऍण्ड्रॉइड 2.2 (फ्रोयो) युक्त फोनों में हिन्दी समर्थन पाया गया था परन्तु नये संस्करणों 2.3.x (जिंजरब्रैड) तथा टैबलेट वाले संस्करणों 3.x (हनीकॉम्ब) में यह जाता रहा। यद्यपि ऍण्ड्रॉइड मार्केट में हिन्दी कीबोर्ड उपलब्ध है परन्तु हिन्दी प्रदर्शन न होने से बात नहीं बनती।



ब्लैकबेरी ओऍस
ब्लैकबेरी ओऍस कनाडा की RIM (रिसर्च इन मोशन) कम्पनी के ब्लैकबेरी फोनों में प्रयुक्त होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। ब्लैकबेरी फोन नेटिव कॉर्पोरेट ईमेल जैसी व्यावसायिक खूबियों के लिये जाने जाते रहे हैं तथा एक वर्ग विशेष की पसन्द रहे हैं। इनकी एक पहचान क्वर्टी कीपैड रहा है यद्यपि अब इनमें भी टचस्क्रीन स्मार्टफोन आ गये हैं। यह ओऍस भी केवल रिम के फोनों में ही उपयोग होता है। यह मूल रुप से बिजनेस केन्द्रित ओऍस था। बाद में इसमें मल्टीमीडिया फीचर जोड़ी गयीं। सितम्बर 2010 में रिम ने टैबलेट कम्प्यूटरों के लिये ब्लैकबेरी टैबलेट ओऍस बनाया।

ब्लैकबेरी ओऍस के नये संस्करणों में हिन्दी प्रदर्शन समर्थन है तथा टचस्क्रीन वाले फोनों हेतु हिन्दी का वर्चुअल कीबोर्ड भी है।

इसके अलावा भी कुछ और मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम हैं जैसे नोकिया/इंटैल का माइमो/मीगो, सैमसंग का बडा, ऍचपी का वेबओऍस (जो कि उसने पाम से खरीदा)। ऍण्ड्रॉइड, बडा, वेबओऍस तथा माइमो/मीगो लिनक्स पर आधारित हैं जबकि आइओऍस की जड़ें यूनिक्स में हैं।



ऍप स्टोर (ऍप्लिकेशन स्टोर)
ऍप्लिकेशन स्टोर स्मार्टफोनों हेतु एक ऑनलाइन डिजिटल ऍप्लिकेशन वितरण प्लेटफॉर्म होता है। इसके लिये फोन में एक ऍप्लिकेशन अन्तर्निर्मित होती है जिसके माध्यम से प्रयोक्ता ऍप्लिकेशनों को ब्राउज, डाउनलोड तथा इंस्टाल कर सकते हैं। ऍप्लिकेशन स्टोर का विचार सबके पहले ऍपल द्वारा आइफोन के लिये जुलाई 2008 में लाया गया था तथा उस समय “ऍप स्टोर” शब्द इसी के लिये रुढ़ था। बाद में ऍपल के ऍप स्टोर की सफलता तथा अन्य मोबाइल प्लेटफॉर्मों हेतु ऐसी ही सेवाओं के आने पर ऍप स्टोर टर्म इस प्रकार की अन्य सेवाओं हेतु भी प्रयोग होने लगी। हालाँकि ऍपल ने 2008 में ऍप स्टोर शब्द पर ट्रेडमार्क हेतु आवेदन किया जो कि 2011 में स्वीकृत भी हो गया ।

मोबाइल का इतिहास

मोबाइल फोन का इतिहास


चालीस साल पहले जब मोबाइल फ़ोन की शुरुआत हुई थी, उसके बाद से इसका सफ़र काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. हम यहां बता रहे हैं इसके विकास के 40 अहम पड़ाव.चार दशक पहले 1973 में मार्टिन कूपर ने 3 अप्रेल को पहला स्‍मार्टफोन लांच किया था। मोटोरोला के इस पहले सेलफोन की लम्‍बाई 10 इंच की ओर वजन 1 किलो के करीब था। मार्टिन कूपन ने 1952 में मोटोरोला कंपनी ज्‍वाइन की थी और आज भी वे उसी में काम कर रहे हैं।
  • चालीस साल पहले तीन अप्रैल 1973 को मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कूपर ने अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी के एक कर्मचारी को फ़ोन कर मोबाइल फ़ोन पर बातचीत की शुरुआत की थी.
  • इसके क़रीब 10 साल बाद मोटोरोला ने पहला मोबाइल हैंडसेट बाजार में उतारा था. इसकी क़ीमत थी क़रीब दो लाख रुपये.
  • आज दुनिया में इसके क़रीब साढ़े छह अरब उपभोक्ता हैं.
  • मोटोरोला के पहले हैंडसेट का नाम था, डायना टीएसी. इसकी बैट्री को एक बार रिचार्ज कर क़रीब 35 मिनट तक बातचीत की जा सकती थी.
  • डायना टीएसी को बाज़ार में उतारने से पहले उसका वजन क़रीब 794 ग्राम तक कम किया गया. इसके बाद भी यह इतना भारी था कि इसकी चोट से किसी की जान जा सकती थी.
  • हास्य कलाकार एरिन वाइज ने 1985 में सेंट कैथरीन बंदरगाह से वोडाफ़ोन के दफ्तर फोन कर ब्रिटेन में मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल की शुरुआत की.
  • ओ2 के नाम से मशहूर सेलनेट ने 1985 में अपनी सेवा शुरू करके वोडाफोन का एकाधिकार तो़ड़ दिया. वोडाफ़ोन को दस लाख ग्राहक बनाने में नौ साल का समय लगा. वहीं सेलनेट ने केवल डेढ़ साल में ही अगले दस लाख ग्राहक जोड़ लिए.
  • फ्रांसीसी व्यवसायी फ़िलिप ख़ान ने 11 जून 1997 को अपनी नवजात बेटी सोफ़ी की फोटो लेकर कैमरे वाले मोबाइल फ़ोन की शुरुआत की.
  • भारत सहित कई दूसरे देशों ने पिछले कुछ सालों में गाड़ी चलाते समय मोबाइल फ़ोन पर बात करने पर प्रतिबंधित लगा दिया है.
  • एरिजोना के एक प्रतिष्ठान ने सितंबर 2007 में कुत्तों के लिए मोबाइल फ़ोन बाज़ार में उतारा. क़रीब 25 हज़ार रुपये की क़ीमत वाला यह फ़ोन जीपीएस सैटेलाइट सुविधा से लैस था.
  • साल 1993 में आयोजित वायरलेस वर्ल्ड कांफ्रेंस में आईबीएम सिमान नाम का पहला स्मार्टफ़ोन पेश किया गया. इसमें शुरुआती दौर की टचस्क्रीन लगी हुई थी. यह ईमेल, इलेक्ट्रिक पेजर, कैलेंडर, कैलकुलेटर और ऐड्रेस बुक के रूप में काम करता था.
  • टैक्स मैसेज के लिए 160 अक्षरों की सीमा फ्रीडेलहम हेलीब्रांड नाम के एक जर्मन इजीनियर ने शुरू की. इसका ख्याल उन्हें अपने टाइपराइटर पर काम करते हुए आया.
  • पोस्टकार्ड की लंबाई और बिजनेस टेलीग्राम के अध्ययन ने उनकी इस धारणा की पुष्टि की. मोबाइल इंडस्ट्री ने इसे 1986 में मापडंद बना लिया. इसका प्रभाव हम ट्विटर पर भी देख सकते हैं.
  • साल 2012 में एक अरब 70 करोड़ मोबाइल हैंडसेट बिके. सबसे अधिक बिकने वालों में सैमसंग, नोकिया और ऐप्पल के हैंडसेट शामिल थे.
  • ब्रिटेन में पहला एसएमएस नील पापवर्थ नाम के एक इंजीनियर ने तीन दिसंबर 1992 को ऑरबिटल 901 हैंडसेट ने अपने मित्र रिचर्ड जॉर्विस को भेजा था. उन्होंने लिखा था,‘मैरी क्रिसमस.
  • ब्रिटेन में 2011 में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं ने डेढ़ सौ अरब एसएमएस भेजे थे. एसएमएस भेजने वालों में 12 से 15 साल के बच्चों की संख्या अधिक थी. इन्होंने हर हफ्ते औसतन 193 एसएमएस भेजे.
  • दुनिया भर में कहीं भी किसी भी समय लोग एक दूसरे से संपर्क करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं.एक समय था जब इसके लिए लोग बहुत वजनी हैंडसेट का इस्तेमाल करते थे. आज ये मोबाइल हैंडसेट बहुत ही पतले, छोटे और सुविधाजनक हो चुके हैं.
  • आधुनिक मोबाइल फ़ोन इंफ्रारेड, ब्लूटूथ और अन्य वायरलेस सुविधाओं से लैस हैं.
  • मोबाइल फ़ोन की तमाम खूबियों के बाद भी इनकी कुछ कमजोरियां भी हैं, जैसे गाड़ी चलाते समय इसका इस्तेमाल ख़तरनाक है, कई बार इसका इस्तेमाल परेशान करने में भी किया जाता है. वहीं कुछ छात्र इसका इस्तेमाल नकल करने में करते हैं. इसे देखते हुए कई स्कूलों ने कक्षाओं में मोबाइल फ़ोन ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
  • आजकल के मोबाइल फ़ोन पर नेट बैंकिंग, वेब सर्फिंग, वीडियो स्ट्रीमिंग और वीडियो गेम जैसी सुविधाओं का आनंद लिया जा सकता है.
  • शोध में पता चला है कि स्मार्टफ़ोन का उपयोग करने वाले लोग प्रतिदिन औसतन 12 मिनट फ़ोन कॉल्स पर खर्च करते हैं.
  • मोबाइल फ़ोन के उपभोक्ता हैंडसेट पर गेम खेलने पर 14 मिनट खर्च करते हैं.
  • मोबाइल फ़ोन के उपभोक्ता हैंडसेट पर औसतन 16 मिनट म्यूज़िक सुनते हैं.
  • वे सोशल मीडिया पर 17 मिनट बिताते हैं.
  • ऑनलाइन ब्राउजिंग पर 25 मिनट गुजारते हैं.
  • मोबाइल फ़ोन उपभोक्ता हैंडसेट का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल समय देखने के लिए करते हैं.
  • अब तक सबसे ज्यादा बिकने वाले हैंडसेट का रिकॉर्ड नोकिया 1100 के नाम है, जिसके 2003 में लांच होने के बाद 25 करोड़ से अधिक सेट बिके थे.
  • जब यह अफ़वाह उड़ी कि नोकिया 1100 का इस्तेमाल ऑनलाइन मनी ट्रांसफर को हैक करने में हो सकता है तो इसका सेकेंडहैंड सेट भी 10 हज़ार डॉलर में बिका.
  • आईफ़ोन को जून 2007 में अमरीका में लांच किया गया था. उस समय आलम यह था कि पहला सेट पाने के लिए लोग रात से ही दुकान के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो गए थे.
  • हालांकि, बाद में इससे उन्हें निराशा हाथ लगी क्योंकि यह फ़ोन उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा.
  • साल 2011 के अंत तक विकासशील देशों में हर सौ लोगों में से 78 के पास मोबाइल फ़ोन था. विकसित देशों में यह आंकड़ा प्रति सौ लोगों पर 122 का था.
  • 2011 के अंत तक भारत में प्रति सौ लोगों में से 74 लोग मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे थे.
  • ऐसा अनुमान है कि 2016 में मोबाइल फ़ोन की सालाना बिक्री क़रीब दो अरब एक करोड़ यूनिट हो जाएगी.
  • भारत में 2015 तक मोबाइल फ़ोन की सालाना बिक्री 32.2 करोड़ यूनिट होने का अनुमान है.
  • ब्रिटेन और वेल्स में 2008 के बाद से हर साल क़रीब आठ हजार लोगों को गाड़ी चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल करने के आरोप में पकड़कर अदालत में पेश किया जाता है. इनमें से क़रीब एक चौथाई मामले अकले लंदन में सामने आते हैं.
  • गूगल की सहायक कंपनी एंड्रायड इंक ने 2007 में टच स्क्रीन मोबाइल फ़ोन, स्मार्टफ़ोन और टैबलेट कंप्यूटर के लिए एंड्रायड नाम का ऑपरेटिंग सिस्टम बाजार में पेश किया.
  • मोबाइल फ़ोन निर्माताओं ने उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को देखते हुए अब हैंडसेट में मेमोरी कार्ड के लिए जगह, फ्लिप स्क्रीन, कैमरा, टच स्क्रीन और यूएसबी पोर्ट जैसी सुविधाएं देनी शुरू कर दी हैं.
  • भारत, अफ्रीका और ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यस्थाएं मोबाइल फ़ोन का प्रमुख बाज़ार हैं. भारत में हर महीने क़रीब 60 लाख मोबाइल हैंडसेट बिकते हैं.
  • आज मोबाइल फोन पर बातचीत के लिए प्रतिदिन के रिचार्ज कूपन से लेकर मासिक बिलिंग वाले प्लान मौजूद हैं. इनके जरिए उपभोक्ता मोबाइल पर बातचीत, इंटरनेट सर्फिंग, मैसेजिंग जैसी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं.
  • सोनी का नया स्मार्टफ़ोन एक्सपीरिया ज़ेड पानी में भी ख़राब नहीं होता. यही नहीं यह कंपनी के कैमरों की ही तरह एचडीआर विडियो भी रिकॉर्ड कर सकता है.
  • दुनिया का सबसे महंगा फोन स्‍टॉट ह्यूज डायमंड रोज आईफोन 4 है जिसकी कीमत 7,850,000 डॉलर है। इस फोन में 100 कैरेट के 500 डायमंड लगे हुए हैं। फोन का बैक कवर में रोज गोल्‍ड का बना हुआ है जबकि एप्‍पल को लोगों 53 डायमंड का बना हुआ है।
  • नोकिया का 1100 फोन दुनिया में सबसे ज्‍यादा बिकने वाला फोन है, पूरी दुनिया में इसके करीब 250 मीलियन यूनिट बिकी थीं। नोकिया ने एस 1100 फोन को 2003 में लांच किया था।
  • सोनिम एक्‍सपी 3300 (XP3300) फोर्स दुनिया का सबसे मजबूत स्‍मार्टफोन है जिसका नाम गिनीज वर्ल्‍ड रिकार्ड में भी दर्ज है। इस फोन को 84 फीट की ऊंचाई से फेकने के बाद भी प्रयोग किया गया है। इसके अलावा पानी के अंदर 2 मीटर तक फोन को रखने पर भी इसमें कोई खराबी नहीं आई।
  • सीमेंस ने एसएल 45 (SL45) नाम से दुनिया का पहला म्‍यूजिक फोन लांच किया था। जिसमें एक्‍पेंडेबल मैमोरी के साथ एमपी 3 प्‍लेयर और हेडफोन सपोर्ट भी था।
  • मोबाइल से मैसेज करने के मामले में पूरी दुनिया में फिलीपीन सबसे आगे हैं यहां पर रोज 1.4 बिलियन टेक्‍ट मैसेज भेजे जाते हैं पहले यहां पर मोबाइल से मैसेज करने पर कोई चार्ज नहीं लगता था लेकिन अब इसके लिए नाम मात्र का चार्ज देना पड़ता है।
  • 1985 में 45 साल के रीसर्चर फ्रॉयडल्‍म हिलब्रांड ने 160 कैरेक्‍टर मैसेज का कांसेप्‍ट निकाला था। उन्‍होंने देखों कि टाइपराइटर में ज्‍यादातर मैसेज 160 कैरेक्‍टर के थे। जबकि सबसे पहले मोबाइल में मैसेज करेक्‍टर लिमिट 128 कैरेक्‍टर थी।
  • हो सकता है आपको ये सुनकर थोड़ी हैरानी हो लेकिन 1865 में नोकिया कागज बनाने का काम करती थी। इसके अलावा कंपनी रबर के कुछ प्रोडेक्‍ट भी बनाती थी जैसे इलेक्‍ट्रिक केबल, गैस मास्‍ट और प्‍लास्‍टिक, नोकिया ने अपना सबसे पहला मोबाइल 1980 में लांच किया था।
  • जेम्‍स बांड ने अपनी मूवी में सबसे पहला फोन सोनी एरिक्‍सन JB988 प्रयोग किया था। जेम्‍स बांड अपने इस फोन से न केवल कॉल कर सकता था बल्‍कि इसमें कई एक्‍ट्रा फीचर भी थे। जैसे फिंगरप्रिंट लेना, रिमोट कंट्रोल का काम करना।

कीबोर्ड शार्टकट्स



  यूनिक कम्पूटर एजुकेशन 

प्रणाली

Ctrl + ए . . . . . . . . . . . . . . . . सभी का चयन 
कंट्रोल + सी. . . . . . . . . . . . . . . . कॉपी 
+ एक्स के लिए CTRL . . . . . . . . . . . . . . . . कट 
Ctrl + वी. . . . . . . . . . . . . . . . पेस्ट 
Ctrl + जेड . . . . . . . . . . . . . . . . पूर्ववत करें 
कंट्रोल + बी. . . . . . . . . . . . . . . . बोल्ड 
कंट्रोल + यू. . . . . . . . . . . . . . . . रेखांकित 
कंट्रोल + आई. . . . . . . . . . . . . . . . तिरछा

एफ 1. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . मदद 
F2. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . चयनित वस्तु का नाम बदलें 
F3. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . सभी फाइलों का पता लगाएं 
F4. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . संवाद में तेज ड्रॉप-डाउन सूचियों खोलता 
करें F5. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . वर्तमान विंडो को ताज़ा 
F6. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . विंडोज एक्सप्लोरर में ध्यान बदलाव 
F10. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . मेनू पट्टी विकल्प को सक्रिय करें 
Alt + Tab. . . . . . . . . . . . . . . . खुला क्षुधा के बीच साइकिल 
Alt + F4. . . . . . . . . . . . . . . . . मौजूदा कार्यक्रम काउंटर से बाहर निकलें 
Alt + F6. . . . . . . . . . . . . . . . . विंडोज मौजूदा कार्यक्रम के बीच स्विच 
एंटर + ऑल्ट. . . . . . . . . . . . . . गुण संवाद खोलता 
Alt + अंतरिक्ष. . . . . . . . . . . . . . वर्तमान विंडो के लिए सिस्टम मेनू 
Alt + ¢. . . . . . . . . . . . . . . . . . संवाद बॉक्स में ड्रॉप-डाउन सूचियों खुलती 
BACKSPACE-. . . . . . . . . . . . . मूल फ़ोल्डर को स्विच 
Ctrl + ईएससी. . . . . . . . . . . . . . प्रारंभ मेनू खोलता 
Ctrl + Alt + Del. . . . . . . . . . कार्य प्रबंधक खोलता है, कंप्यूटर रिबूट 
Ctrl + टैब. . . . . . . . . . . . . . टैब के माध्यम से बुरा संपत्ति 
Ctrl + Shift + खींचें. . . . . . . शॉर्टकट बनाएं (भी, dredges राइट क्लिक करें) 
Ctrl + खींचें. . . . . . . . . . . . . फाइल कॉपी 
ईएससी. . . . . . . . . . . . . . . . . . . समारोह अंतिम रद्द 
पाली. . . . . . . . . . . . . . . . . . प्रेस / पकड़ शिफ्ट, ऑटो-प्ले बायपास करने के लिए सीडी-रोम डालने 
Shift + खींचें. . . . . . . . . . . . बुरा स्पिन 
Shift + F10. . . . . . . . . . . . . . . संदर्भ मेनू (एक ही सही क्लिक के रूप में) खोलता 
Shift + Delete. . . . . . . . . . . पूर्ण (रीसायकल बिन नजरअंदाज) को हटाने पोंछ 
Alt + रेखांकित अक्षर. . . . इसी मेनू खोलता है

"सफलता का रहस्य"

"सफलता का रहस्य" (The secret of success)

जीवन में सफल होना कौन नही चाहता, हम अपने अपने तरीके अपना कर जीवन में सफल होने का प्रयत्न करते रहते हैं।हर व्यक्ति की मूलभूत चाहत होती है कि उसके जीने के मायने हों। वह इतना सक्षम हो कि न केवल अपनी वरन अपने परिजनों-परिचितों की भी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति कर सके। समाज में उसका सम्माननीय स्थान हो।  कोई व्यक्ति व्यवसाय करता है, कोई व्यक्ति नौकरी करता है तो कोई अन्य उद्योग करता है। जीवन में सफलता पाने के लिए एक लक्ष्य अपना कर उस का चिंतन -मनन करो ,उसे अपना जीवन बना लो अपनी सम्पूर्ण शक्ति को लगा दो अन्य विचार त्याग दो । दृढ़ता के साथ उसे पूरा करने की इक्षा करो । दृढ़ता में बड़ी ताकत होती है । प्रबल इक्षा शक्ति सफलता जरुर देगी ।जो लोग मंजिल पर नहीं पहुंच पाते, वे इसके लिए अपने भाग्य को कोसते हैं और इसे नियति मानकर बैठ जाते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम है कि जीवन में सफलता पाने के लिए अपने भीतर कुछ विशिष्ट गुण पैदा करने पड़ते हैं जिन्हें हम सफलता के सूत्र भी कह सकते हैं। यहां कुछ ऐसे ही सूत्रों की चर्चा कर रहे हैं जिन्हें आत्मसात् करके आप अपने कार्य क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
आत्मविश्वास : प्रत्येक व्यक्ति निरन्तर विकास और सफलताओं के ख्वाब संजोता है लेकिन जब ख्वाब टूटने लगते हैं तो वह निराश व तनाव को अपने ऊपर हावी कर लेता है। उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि आज के प्रतिस्पर्धा  वाले युग में कोई भी कार्य कठिन ज़रूर हो सकता है परन्तु असंभव नहीं। ज़रूरत है तो बस आत्मविश्वास की। ऐसी धारणा है कि मनुष्य की आधी क्षमता शरीर और कौशल के साथ जुड़ी होती है, और शेष क्षमता आत्मविश्वास के सहारे टिकी रहती है, परन्तु सभी इसका उपयोग नहीं कर पाते, जो करते हैं सफलता एक न एक दिन उनके कदम चूमती है। आत्मविश्वास से ही मनुष्य के भीतर की क्षमता जाग्रत होती है। कई लोगों में योग्यता व क्षमता तो होती है लेकिन आत्मविश्वास नहीं होता, इसलिए सफलता भी इनसे दूर रहती है। सफलता तभी मिलेगी जब आप अपनी क्षमताओं पर विश्वास करते हुए अटूट लगन व मेहनत से काम करें।
किसी भी कार्य की सफलता में जितना बड़ा योगदान हमारे अभ्यास और परिश्रम का होता है, उतना ही आत्मविश्वास का भी होता है। मनोवैज्ञानिक आत्मविश्वास को प्रेरणा का ही एक आयाम मानते हैं, जितनी अधिक प्रेरणा होगी, उतना ही अधिक आत्मविश्वास और सफलता की संभावना होगी। आत्मविश्वास बढ़ाने के कई तरीके हो सकते हैं। अपने अतीत की सफल घटनाओं को याद करने से आत्मविश्वास बढ़ता है। अपना कोई आदर्श भी बनाया जा सकता है।
अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहते हुए लगातार परिश्रम से अपने आत्मविश्वास को जगाया जा सकता है। इसी के बल पर अपनी संकल्प शक्ति को भी मज़बूत किया जा सकता है। आत्मविश्वासी बनकर आप व्यक्तिगत सफलता तो पाएंगे ही, समाज में भी आप को सम्मान मिलेगा।
इच्छाशक्ति : लक्ष्य प्राप्ति के लिए यह ज़रूरी है अदम्य इच्छाशक्ति का होना। इच्छाशक्ति ही मनुष्य को उसके लक्ष्य तक लेकर जाती है। चाहे रास्ता कितना ही लंबा क्यों न हो, चाहे कितना ही त्याग क्यों न करना पड़े, इच्छाशक्ति ऐसी ऊर्जा या ताकत है जो मनुष्य को उसके उद्देश्य तक अवश्य पहुंचाती है। जीवन में गंभीर चुनौतियां क्यों न हों, यदि व्यक्ति में चुनौतियों का सामना करने की इच्छाशक्ति है तो कुछ भी असंभव नहीं है। प्रबल इच्छाशक्ति रखने वाला कोई भी व्यक्ति कार्य कुशल बन सकता है। इच्छाशक्ति सफलता की कुंजी है, इसलिए अपने भीतर इसे पैदा करें। इच्छाशक्ति के बल पर ही साहसी, परिश्रमी एवं धुन के पक्के लोग विश्व कीर्तिमान रचते हैं।
लक्ष्य तय करें : बिना दिशा निश्चित किए यदि समुद्र में एक जलयान को छोड़ दिया जाए तो इसका क्या परिणाम होगा, आप स्वयं अंदाज़ लगा सकते हैं। इधर-उधर डोलता हुआ जलयान या तो समुद्री चट्टानों से या फिर तट से टकराकर समुद्र में डूब जाएगा, लेकिन जब उसी जलयान की दिशा निश्चित होगी तो समुद्र को चीरते हुए वह अपनी मंजिल तक पहुंच जाएगा। यही उदाहरण हमारे जीवन पर भी लागू होता है। बिना अपना लक्ष्य तय किये हम अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच सकते। भाग्य के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं।
योग्यता : जीवन का लक्ष्य हमारे सामर्थ्य, इच्छाशक्ति और योग्यता पर आधारित होना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति के लिए सबसे पहले यह ज़रूरी है कि आप यह तय करें कि आप किस रास्ते पर चलना चाहते हैं। उसके बाद यह सोचें कि किन साधनों से आप उस रास्ते पर चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। जैसे-जैसे आप रास्ते पर आगे बढ़ते जाएंगे, आपके साधन भी बढ़ते जाएंगे। यदि आप असफलता की असहनीय वेदना से बचना चाहते हैं तो सिर्फ लक्ष्य ही दिखाई देना चाहिए। वास्तव में लक्ष्य तय कर लेना ही आधी सफलता हासिल कर लेना है। अपने लक्ष्य को सकारात्मक तरीके से निर्मित करना चाहिए न कि नकारात्मक भाव से। लक्ष्य का उद्देश्य आपको गतिशील बनाए रखने के लिए प्रेरित करने के लिए होना चाहिए। जब आप अपना लक्ष्य निर्धारित करें तो यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि आप अपनी क्षमताओं व शक्तियों का पूरा उपयोग कर रहे हैं। लक्ष्य हासिल करने के लिए आपको अपनी क्षमताओं का भी पता होना चाहिए। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते थे लेकिन उन्होंने अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं किया और अपने लक्ष्य को सीमित दायरे में ही रखा।
समय का सदुपयोग : जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के साथ चलने व उसका सदुपयोग करने वाला व्यक्ति ही जीवन में कामयाबी के शिखर पर पहुंच सकता है। योजनाबद्ध तरीके से शुरू किया गया कार्य समय सेपूरा होता है और अपेक्षित परिणाम देता है, इसलिए समय के महत्व को समझें।
इस प्रकार के कुछ टिप्स अपनाकर आप भी एक सफल व्यक्ति बन सकते हैं। तो फिर देर किसी बात की? हो जाइए आप तैयार और अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा दीजिए।
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Google Adsense क्या है!

# Google Adsense क्या है!-

google Adsense एक CPC(cost per click) program है! तथा गूगल ने इसको 18 जून 2003 को launched किया था! ये एक फ्री और आसान तरीका है! पैसे कमाने का!! गूगल Blogger और wepmaster को ये allow करता है! की वह अपना ब्लॉग को google Adsense से approved करा कर उसका ads अपने ब्लॉग पर लगा कर पैसा  कमा सके! जब कोई ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर कोई ads लगाता है! तो वह ads गूगल सर्च इंजन पर एक बढ़िया Ads की तरह दिखता है! जब कोई इंटरनेट यूजर उस पर क्लिक करता है तो उस यूजर के country के हिसाब से हर एक क्लिक पर earning होती है! 
Google Adsense गूगल का एक फ्री tool है! तथा google Adsense पर कोई भी अपना अकॉउंट बना सकता है! किन्तु google Adsense पर अकॉउंट बनाने के लिए आपके पास एक बढ़िया ब्लॉग होना चाहिए! तथा उस ब्लॉग की quality high होनी चाहिए इसके साथ साथ आपके ब्लॉग पर कम से कम 20-25 बढ़िया quality का uniqe आर्टिकल होने चाहिए! आर्टिकल किसी का copy किया हुआ नही होना चाहिए! ब्लॉग का ट्रैफिक भी बढ़िया हो! ये सभी चीज़े जब आपके ब्लॉग पर होगी तभी जाके google Adsense आपके ब्लॉग को approvel देगा! 
अगर आप ब्लॉगिंग में नये है! तथा आपके पास उतना पैसा नही है! की आप अपना खुद का डोमेन+होस्टिंग ले सके! तो आप blogger.com  पर जाकर एक फ्री ब्लॉग बना सकते है! जहा पर आपका किसी भी प्रकार का कोई पैसा नही लगेगा! एक बार जब आपके ब्लॉग पर visitor आने लगेंगे! तथा जब आपके ब्लॉग का ट्रैफिक बढ़िया हो जाये! तब आप अपना फ्री वाला ब्लॉग भी google Adsense से approved करा सकते है! जब आपका ब्लॉग approved हो जाये तब आप google Adsense के dashbord पर जाकर अपने फ्री वाले ब्लॉग की स्तिथि,ट्रैफिक, और daily earning आदि चीज़े देख सकते है! मतलब आप अपने ब्लॉग का पूरा condition google Adsense के dashbord में देख सकते है! जब आपके google Adsense की कमाई $100 हो जाये तब आप अपना पैसा बैंक अकॉउंट या फिर चेक के माध्यम से पा सकते है! आप अपना cash डिलेवरी का जो option choose करेंगे उसी के माध्यम से आपका पैसा आपको मिलेगा! एक और महत्यपूर्ण बात जब आप google Adsense पर अपना अकॉउंट बनाये तो आप अपना payee नाम वही लिखे जिस नाम से आपका बैंक में अकॉउंट हो! तथा हर एक spelling मिला ले क्योकि नाम गलत होने से आपको आपका पैसा नही मिल पायेगा! अपने बैंक अकॉउंट और google Adsense अकॉउंट दोनों में आपका नाम sameTo same होना चाहिए!

Google Adsense कैसे काम करता है!-

1- Googel Adsense अकॉउंट बनाये- 

Google Adsense पर काम शुरू करने से पहले आपको google Adsense पर अपना अकॉउंट बनाना होगा! आप सबसे पहले google Adsense के offical wepsite पर जाये और अपना google Adsense का अकॉउंट ब्लॉग के thought रजिस्टर करे! 
http://www.google.com /Adsense

२- Adsense को अपने blog पर add करे- 

अपने google adsense अकॉउंट को अपने ब्लॉग पर add करे! ये एक बहुत ही महत्यपूर्ण step है!क्योकि इसके बिना आप का अकॉउंट accept नही होगा एक बार ये step पूरा हो गया फिर उसके बाद आपका अकॉउंट पूरी तरह से approved हो जायेगा! मगर इसके लिए आपके ब्लॉग पर किसी भी तरह का Ads show नही करना चाहिए! एक बार जब आपका अकॉउंट accepted हो जायेगा तब आप अपने अकॉउंट पर किसी भी ब्लॉग को acces कर सकते है!

3- अपना peyment information भरे-

 ये आप का अंतिम स्टेप है! आपको अपने अकॉउंट में पेमेंट इनफार्मेशन बहुत ही ध्यान से भरना चाहिए! क्योकि आपका पेमेंट वही पर जायेगा जो पेमेंट इनफार्मेशन आप भरेंगे! जब आपका अकॉउंट का बैलेंस $100 पार हो जाये! तो आप आसानी से अपना बैलेंस को अपने बैंक अकॉउंट में ट्रांसफर कर सकते है! मगर उसके लिए आपको अपना पेमेंट  इनफार्मेशन बहुत ध्यान से और सही सही भरना होगा!

#Ads Placement-

1- अपना Ads बनाये- 

यदि आपका ब्लॉग google Adsense से approved हो गया है! तथा verified भी हो गया है! तो आप अपने google Adsense के dashbord में जाकर creat new unit पर अपने हिसाब से अपना Ads बना सकते है! size, type और style आपको अपने हिसाब चुनना होगा अपने Ads के लिए जब आपका Ads पूरा बन जायेगा तो google Adsense आपको उस Ads का एक code देगा! वही code आपको अपने ब्लॉग के उस स्थान पर add करना होगा जहाँ पर आप Ads लगाना चाहते है! आप अपने हर एक पेज पर maximum 3 Ads लगा सकते है!

2- अपना Ads कहाँ place करे- 

आपको अपना Ads वही पर लगाना चाहिए जहाँ पर reader का नजर तुरंत पड़ जाये! मै आपको कुछ बढ़िया जगह बताता हु! जहाँ पर आप अपना Ads लगा सकते है!

* 1 Ads unit sidebar में लगाये जिसका size 160x600 का हो!
* आपको हमेसा एक Ads पेज व आर्टिकल के last  में लगाना चाहिए!
* fold  के बीच में ब्लॉग के main context में एक Ads लगाये!

3- आप Google Adsense से कितना तक कम सकते है- 

   आपके google Adsense की कमाई आपके ब्लॉग के कंडीशन और ट्रैफिक पर निर्भर करता है! जैसे-

* आपके ब्लॉग पर कितना ट्रैफिक आ रहा है!
* आपके ब्लॉग का ट्रैफिक किस टाइप का है!
* आपके ब्लॉग पर कितने Ads है!
* आपके Ads का पोजीशन क्या है!
* आपके ब्लॉग का ट्रैफिक किस किस country से आ रहा है!

4- आप अपना google Adsense earning कैसे Revenue करे-

 एक बार जब आपका google Adsense अकॉउंट काम करना शुरू कर देगा! तब आप बहुत सारे तरीके से आप अपने Adsense की earning high कर सकते है! मगर एक बात आपको ध्यान में रखना होगा की कभी भी अपने दोस्तों व अन्य लोगो से अपने Ads पर क्लिक करने के लिए ना कहे क्योकि ऐसा करने से आपका  google Adsense banned हो जायेगा! क्योकि ये गूगल के term और codition के खिलाफ है! 

Summary- 

google Adsense एक आसान और बढ़िया तरीका है! ऑनलाइन पैसे कमाने का और ये अन्य नेटवर्क प्लेटफॉर्म की अपेछा बहुत ही बढ़िया काम करना है! Adsense आपको यह मौका देता है! की आप अपना defferent टाइप का Ads अपने ब्लॉग पर लगाकर पैसा कमा  सकते है! जब कोई उस Ads पर क्लिक करेगा! तब आपके Ads के postion के हिसाब से आपकी कमाई होगी! यदि आपके पास Adsense का अकॉउंट नही है! तो सबसे पहले आप apply करके approved ले ले! मुझे आशा है की आने वाले समय में आप अपने google Adsense की succes stories सबके साथ शेयर करेंगे! 
आपको ये आर्टिकल कैसा लगा अगर आपको google Adsense से संबंधित कोई सवाल पूछना है तो कमेंट के माध्यम से पूछ ले!
 All The Best-

सफलता की रह

हमने देखा है! की ज्यादातर  लोग अपना Target तो सेट कर लेते है! लेकिन उसमे आने वाली चुनौतियां  से घबराने लगते है! और जब हम देखते है! की हमारे आस पास के कुछ लोग इसी लक्ष्य को हासिल कर लेते है! तो हम लोग जल्दीबाजी में कुछ Sortcut  तरीके का  इस्तेमाल करने के लिए सोचते लगते है! क्योकि हमारे ऊपर दबओ बढ़ जाता है! और ऐसे में हम कोई सफलता का sortcut माध्यम तलासने की कोशिस करते है! यानि की ऐसा कोई रास्ता ढूढ़ते है! जिसमे कम मेहनत करके ज्यादा पैसे कमा सके! इसी sortcut के कारण हमको बार बार असफलता मिलते है!.
इसलिए अपना लक्ष्य तय करते समय अपनी छमताओ का ख्याल रखना जरुरी है! हमेशा लक्ष्य ऐसा बनाये जिसको आप अपनी छमता से हासिल कर ले! यह संभव है! की आप  आज जिस target को set कर रहे है! उसे हासिल करने में आज आप काम सक्छम हो! लेकिन मेहनत और दृढ़निस्चय से आप अपनी छमताओ को  बढ़ा सकते है! लेकिन अगर आप कमजोर है! और आप पहाड़ उठाने की सोच रहे है! तो ये बुद्धिमानी नही है! ब्यक्ति की सोच ही उसकी सफलता का कारण बनता है! तथा हर एक ब्यक्ति  की सोच उसकी शिछा और वातावरण की हिसाब से बिकसित होती है!.
यदि कोई भी ब्यक्ति life  में सफल और महत्योपुर लोगो के साथ रहता है! तो उसमे खुद  को महत्त्पूर्ण बनाने के भावना उससे प्रतियोगिताओ में सफल होने के लिए प्रेरित करती है! आप जिस काम को करना चाहते है! तो उससे करने की दृढ़ता दिखाए! सफल लोग अपने तौर तरीके से सफल होते है! वह दृढनिस्चय की बदवलत Risk  उठाते है! और सफल होते है! यदि आप ने अपना लक्ष्य निश्चित कर लिया है! तो उसकी सफलता पर ही Focuse करे! ये कभी भी न सोचे की अगर मै असफल हो गया तो फिर उसके बाद क्या होगा! इस तरह की सोच रखने से आप अपने लक्ष्य से भटक सकते है! ये सब सोचने के बजाये ये सोचे की आप अपने Target के प्रति क्या क्या तैयारी की है! और किन किन बिषये को अभी और तैयार करना है! और यदि आप कोई  ऐसा रास्ता तलाश है! जो की sortcut हो! तो ये बात  समझ ले की आप अपने  लक्ष्य से दुरी बना रहे है! और अपना time west कर रहे है! ऐसी सोच रखने वाले कभी भी सफल नही होते है! For Exp:- किसी मैग्नीशियम सीसे से सूर्ये की किरणे को एक निश्चित स्थान  पर लगातार  केंद्रिते करने पर वह कागज को जला देता है! इसी प्रकाश आप अपनी सभी शक्तियों को अपने एक ही लक्ष्य पर केंद्रित करने पर आप को सफलता जरूर मिलेगी!

यूनिक लाइन

किसी भी काम को खूबसूरती
से करने के लिए मनुष्य को
उसे स्वयं करना चाहिए।

-नेपोलियन 

Saturday, 17 October 2015

usb

USB (Universal Serial Bus ) कंप्यूटर को दुसरे बाहरी यंत्रो से जोड़ने के लिए सबसे ज्यादा सहायक कनेक्शन है. बाहरी यंत्र जैसेकि डिजिटल कैमरा, प्रिंटर, स्कैनर या फिर अन्य बाहरी हार्ड ड्राइव. इसके इस्तेमाल से आप अपने डाटा को हर सेकंड 12 Mb की गति से  एक जगह से दूसरी जगह भेज सकते हो. 1996 में कुछ कंप्यूटर बनाने वाली कंपनियो ने USB की शुरुआत की थी और आजकल हर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के साथ USB केबल भी आती है ताकि उसको आपके कंप्यूटर के साथ आसानी से जोड़ा जा सके. ये एक पिन की तरह दिखता है. अगर आप इसे कंप्यूटर से जोड़ना चाहते है तो आपको इसे अपने कंप्यूटर के USB पोर्ट से जोड़न होगा, जो आपको अपने कंप्यूटर के CPU के आगे और पीछे मिलते है. USB एक ऐसी टेक्नोलॉजी के हिसाब से बना है जिसमे आप इसे आसानी से कंप्यूटर के साथ जोड़ और हटा सकते हो, इसके लिए आपको बार बार कंप्यूटर को बंद या ऑन नही करना पड़ता.
 
Explain the USB Port Function
Explain the USB Port Function

USB PORT:
आपके कंप्यूटर में USB को लगने के लिए दी गई जगह को USB PORT कहा जाता है. आजकल हर कंप्यूटर USB PORT के साथ आता है ताकि आप इसके जरिये अपने कंप्यूटर के साथ कुछ बाहरी डिवाइस को जोड़ कर उनका इस्तेमाल कर सको. कंप्यूटर ऑपरेटर भी आपके USB को सपोर्ट करता है, और इसी वजह से आपके कंप्यूटर में कोई नही इंस्टालेशन आसानी से और जल्दी हो जाती है. इसके साथ ही आप इसे विंडो 98 या उसके बाद आई किसी भी विंडो में इस्तेमाल कर सकते हो. कंप्यूटर को बाहरी यंत्रो से जोड़ने वाले पुराने तरीके कंप्यूटर के लिए एक तरह से सिर दर्द का काम करते थे लेकिन USB पोर्ट के जरिये कंप्यूटर से जुड़ना बहुत ही आसान होता है.  
USB के 2 version होते है. 
-    USB 1.0 – ये ज्यादातर सिर्फ कीबोर्ड और माउस को जोड़ने के लिए इस्तेमाल होता है और ये 11 Mbps की गति पर काम करता है. 
-    USB 2.0 – ये USB का नया version है और आप इससे किसी भी बाहरी यंत्र को जोड़ सकते हो जो USB पोर्ट को सपोर्ट करता हो. 480 Mbps की गति से काम करता है. इसीलिए पिछले लगभग तीन सालो से हर कंप्यूटर में इस नए version का ही इस्तेमाल होता है.
 
USB Port Kaise Kaam Karta hai
USB Port Kaise Kaam Karta hai

USB कनेक्टर 3 तरह के आते है
1.       टाइप 1 – ये फ्लैट होते है और ये बाकी कनेक्टर से थोड़े बड़े होते है, इन्ही को कंप्यूटर के साथ फाइल लेने या देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इनके जरिये आप कीबोर्ड, माउस, पैनड्राइव, अपना मोबाइल फ़ोन इत्यादि जोड़ सकते हो.
2.       टाइप 2 – ये चकोरकार के होते है और थोड़े बड़े भी होते है, इस तरह के कनेक्टर ज्यादातर स्कैनर, प्रिंटर या फिर हार्ड ड्राइव्स के पाते है जिनके जरिये ये कंप्यूटर के साथ जुड़ते है.
3.       टाइप 3 – ये भी दिखने में टाइप 2 की ही तरह होते है लेकिन इनका आकार छोटा होता है और इनके जरिये कैमरा, MP3 प्लेयर और बाकी के छोटे डिवाइस को कंप्यूटर से जोड़ा जाता है. 
USB पोर्ट के प्रकार
जब आप कंप्यूटर CPU के पीछे देखोगे तो आप पाओगे के वह कई तरह के पोर्ट दिए गये होते है जो कंप्यूटर के हर हिस्से को जोड़ने में सहायक होते है. वे सब एक दुसरे से अलग अलग होते है. उन्ही में से कुछ ऐसे पोर्ट होते है जिन्हें Universal Serial Bus कहा जाता है. ये मुख्यतः 3 प्रकार के पाए जाते है.
·         Type A – ये USB पोर्ट के वास्तविक रूप के होते है जो फ्लैट और आयताकार के दिखाई देते है इनमे आप उन सब USB कनेक्शन को लगा सकते हो जो ऊपर टाइप 1 में बताये गये है.
·         Type B – ये बड़े और चोकोर होते है जिनमे आप अपने प्रिंटर, स्कैनर इत्यादि के USB कनेक्टर को जोड़ते हो.
Type C इनके द्वारा आप अपने उन डिवाइस के साथ डाटा शेयर कर सकते हो जो आपके मनोरंजन के काम आते है. जैसेकि कैमरा, MP3 प्लेयर इत्यादि. ये दिखने में टाइप बी की ही तरह होते है लेकिन आकर में उनसे छोटे होते है.
 
USB पोर्ट क्या है

माउस ( Mouse ) क्या है?

माउस कंप्यूटर के इनपुट डिवाइस में से एक अहम यंत्र है. एक माउस को Pointing Device  भी कहा जाता है क्योकि ये आपको कंप्यूटर स्क्रीन पर मूव करने, चिन्हित करने, चुनने और क्लिक करने में मदद देता है. माउस में दो बटन होते है – 1.)  Right बटन और 2.) Left  बटन.  इनके साथ ही इसके बीच में एक चक्र भी होता है जो आपको ऊपर और नीचे आने में मदद करता है. माउस में दिए दोनों बटन का कार्य अलग अलग होता है. लेफ्ट बटन आपको किसी भी फाइल को ओपन करने के लिए काम आता है. ये एक तरह से ओके ( ok ) के बटन की तरह होता है. जबकि  राईट बटन आपको उस फाइल से जुड़े अन्य आप्शन देता है.
कंप्यूटर माउस का मुख्य काम आपके हाथो के हावभाव को सिग्नल में बदलना है ताकि उसे कंप्यूटर इस्तेमाल कर सके. इन्हें सिग्नल को पकड़ने के लिए माउस में एक ट्रैक बॉल होती है. तो पहले ये जानते है कि ट्रैक बॉल कैसे काम करती है.
 
माउस के लाभ और हानि
माउस के लाभ और हानि

-    माउस के अंदर एक छोटी से बॉल होती है जिसे ट्रैक बल कहते है. जब ये माउस हिलता है तो ये बॉल भी हिलती है और सिग्नल लेकर कंप्यूटर डेस्कटॉप में उसी तरह माउस पॉइंटर को हिलती है.
-    माउस के अंदर दो रोलर होते है एक वो जो X ( Horizontal ) दिशा के सिग्नल पकड़ कर काम करता है और दूसरा Y ( Vertical ) दिशा के सिग्नल पकड़ कर काम करता है. ये बिलकुल आपके मैथ्स के कार्तेसियन प्लेन ( Cartesian Plane ) की तरह काम करता है.
-    इन दोनों रोलर से एक शाफ़्ट ( shaft ) जुडा होता है और शाफ़्ट एक डिस्क को उसके छेद की मदद से घुमाता है. इसलिये जब भी रोलर घूमते है तब शाफ़्ट घूमता है, साथ ही डिस्क भी घूमना शुरू कर देती है
-    इस डिस्क के एक तरफ LED होती है तो दूसरी तरफ सेंसर. जब भी LED से रोशनी आती है तो डिस्क का छेद उसे तोड़ देता है ताकि सेंसर उस रोशनी की पल्सेस को पढ़ सके. पल्सेस की गति ही माउस की गति को आधार देती है. जितनी ज्यादा पल्सेस होंगी आपके माउस की गति भी उतनी ही ज्यादा होगी.
-    अंत में माउस में लगा एक प्रोसेसर उन सेंसर से उन पल्सेस की जानकारी को लेकर उन्हें कंप्यूटर की भाषा ( Binary Language ) में बदल देता है. जिसे कंप्यूटर आसानी से समझ कर काम करने लगता है. तो इस तरह से आपका माउस आपके हाथो के हावभाव को पढ़ कर कंप्यूटर डेस्कटॉप तक जानकारी को पहुंचता है.
माउस को कंप्यूटर से जोड़े:
USB के आने से किसी भी बाहरी यंत्र ( जैसे प्रिंटर, कीबोर्ड, डिजिटल कैमरा इत्यादि ) को कंप्यूटर से जोड़ना बहुत ही आसान हो गया है इसलिए आजकल तो माउस को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए भी USB कनेक्टर का इस्तेमाल होता है. लेकिन पहले माउस को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए PS/2 कनेक्टर का इस्तेमाल होता था. इसके अलावा भी कुछ कंप्यूटर में कुछ सीरियल टाइप के कनेक्टर का इस्तेमाल होता था.
माउस के प्रकार :
माउस मुख्यतः 5 प्रकार के होते है, जो निम्नलिखित है.
1.       सामान्य माउस ( केबल के साथ ) : इन माउस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. ये वे माउस होते है जो हम सामान्यतः अपने आसपास देखते है, जिनको कंप्यूटर से एक केबल की मदद से जोड़ा जाता है
2.       वायरलेस माउस : ज्यादातर वायरलेस माउस कंप्यूटर के साथ जुड़ने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करते है. इनमे एक ट्रांसमीटर ( Transmitter ) और एक रेसिएवर ( Receiver ) लगा होता है. ट्रांसमीटर आपके हाथो के हावभाव को पहचान कर सिग्नल के द्वारा कंप्यूटर तक सिग्नल भेजता है, और रेसिएवर जो आपके कंप्यूटर से जुड़ा होता है उन सिग्नल को पकड़ता है. फिर उन्हें कंप्यूटर की लैंग्वेज में बदल कर आपके माउस ड्राईवर तक भेजता है. जिसके आधार पर कंप्यूटर डेस्कटॉप पर माउस काम करता है.
3.       ब्लूटूथ माउस : ब्लूटूथ माउस भी रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करता है. ब्लूटूथ तकनीक से आप न सिर्फ माउस बल्कि प्रिंटर, हेडसेट, कीबोर्ड इत्यादि यंत्रो को भी कोम्प्टर से आसानी से जोड़ सकते हो. इसके लिए आपके कंप्यूटर में ब्लूटूथ अडाप्टर का होना बहुत जरुरी है. ताकि आपका कंप्यूटर में ब्लूटूथ चल सके और वो ब्लूटूथ के सिग्नल को पा सके. ब्लूटूथ माउस की रेंज लगभग 33 फूट ( 10 मीटर ) होती है. 
4.       RF माउस : इसके लिए आपको एक रिसीवर को USB की तरह अपने कंप्यूटर में लगाना होता है. ये सिर्फ आपके उस कंप्यूटर माउस के ही सिग्नल लेगा, जिसको आपने कंप्यूटर के साथ जोड़ा है. ये भी 33 फूट की दूरी तक काम करने की क्षमता रखते है. 
5.       बायोमेट्रिक माउस ( Biometric mouse) : बायोमेट्रिक माउस को सुरक्षा की दृष्टी को ध्यान में रख कर बनाया गया था. ये सिर्फ उस माउस को काम करने की अनुमति देता है जिसको आपके कंप्यूटर में मान्यता प्राप्त हो. इसमें आपके फिंगर प्रिंट को भी सिग्नल के द्वारा लिया जाता है ताकि आपका माउस आपके अलावा कोई और न इस्तेमाल कर सके. इसके इस्तेमाल के लिए आपको अपने कंप्यूटर में एक सॉफ्टवेर इनस्टॉल करना पड़ता है, जो आपको इस माउस को खरीदते वक़्त आपको मिलेगा. आप इस सॉफ्टवेर को इनस्टॉल करे, अपने फिंगरप्रिंट रजिस्टर करके स्टोर करे और फिर आप अपने माउस का आसानी से इस्तेमाल करे.
 

हार्ड डिस्क क्या होती है

हार्ड डिस्क एक तरह से कुछ डिस्को का समूह होता है, जो आपके डाटा को इलेक्ट्रोमग्नेटीकली तरीके से एक गोलाकार डिस्क में संभाल कर रखता है. इसका एक हिस्सा आपकी डाटा को लिखता और पढता है. हर पढ़े और लिखे हुए ऑपरेशन को एक रखने के लिए एक जगह की जरूरत होती है, जिसे “सीक” ( seek ) कहते है. हर हार्ड डिस्क ड्राइव यूनिट एक सेट रोटेशन गति के साथ ही आती है जोकि 4500 से 7200 rpm तक होती है. डिस्क के काम करने के समय को मिली सेकंड में नापा जाता है.
हार्ड डिस्क के प्रकार :

1.       IDE 

2.       SATA

3.       SCSI

4.       SAS

IDE ( Integrated Drive Electronics Drive ) :

इन्हें DE ( Drive Electronics ) और PATA ( Parallel Advance Technology Attachment Drive ) भी कहा जाता है. इनमे ज्यादातार 40 पिन पाई जाती है. ये हर सेकंड 133 MB की स्थानान्तरण रेट पर काम करता है. ये एक समय में 8 बिट डाटा को सेंड कर सकता है. PATA केबल का इस्तेमाल PATA हार्ड डिस्क को जोड़ने के लिए होता है. इससे दो ड्राइव एक साथ जोड़े जा सकते है. जिसमे से एक को मालिक और दुसरे को नौकर माना जाता है.
 
Explain Hard Disk Parts and its Types in Hindi
Explain Hard Disk Parts and its Types

SATA ( Serial Advance Technology Attachment Drive) :

इस ड्राइव में 7 पिन होती है, जिसमे से 4 पिन 2 जोड़े में काम करती है और फाइल को भेजने और पाने में मदद करती है. जबकि बची हुई 3 पिन नीचे ही रहती है. SATA ड्राइव हर सेकंड में 300 MB  तक के डाटा को ट्रान्सफर कर सकती है. ये डाटा को बिट के बाद बिट के तरीके से भेजती है. SATA केबल को SATA हार्ड डिस्क को जोड़ने में इस्तेमाल किया जाता है. इसमें केवल एक ही ड्राइव को जोड़ा जा सकता है.

SCSI ( Small Computer System Interface Drive ) :

इसमें ज्यादातर 50 से 68 पिन होती है और ये हर सेकंड 640 MB डाटा को भेज सकता है. SCSI केबल को SCSI हार्ड डिस्क को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ज्यादा से ज्यादा 16 ड्राइव जोड़े जा सकते है. 

SAS ( Serial Attached SCSI Drive ) :

इसमें ज्यादातर 805 MB डाटा को हर सेकंड भेजने की क्षमता होती है. इसकी केबल के साथ हम ज्यादा से ज्यादा 128 ड्राइव जोड़ सकते है.

बाहरी ( External ) हार्ड डिस्क और उसके लाभ :

आजकल हम सबके पास अपनी अपने कुछ डाटा, कुछ जानकारियां, या कुछ अन्य डॉक्यूमेंट होते है जिन्हें हम हमेशा अपने पास रखना चाहते है, लेकिन क्योकि आपकी वे डाटा आपके कंप्यूटर में होती है इसलिए आप उन्हें अपने साथ नही ले जा पाते, तब आप पैन ड्राइव का इस्तेमाल करते हो लेकिन पैन ड्राइव का इतना साइज़ ही नही होता जिसमे वो आपकी डाटा को स्टोर कर सके. तब आप बहुत परेशान होते हो. आपकी इसी परेशानी को बाहरी हार्ड डिस्क आसानी से दूर कर सकती है. ये कम से कम 320 GB तक का डाटा आसानी से स्टोर कर सकती है. जो आपके बैकअप के लिए बहुत होता है. इसके अलावा भी बहरी हार्ड डिस्क के कुछ लाभ होते है, आज हम उन्ही के बारे मे आपको बताते है.
 
Hard Disk ke part or prkar kya hai
Hard Disk ke part or prkar kya hai

बाहरी हार्ड डिस्क के लाभ

-    लेखागार ( Archiving ) :  कई बार कुछ ऐसा होता है कि हमारे पास अपने कंप्यूटर में अपने डाटा को रखने के लिए ज्यादा स्पेस नही होता या हम अपने एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में एक साथ ज्यादा डाटा भेज नही पते, उस स्थिति में हमे बाहरी हार्ड डिस्क की जरूरत होती है ताकि हम एक ही बार में काफी डाटा को उठा कर एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में डाल सकते.

-    बैकअप : कंप्यूटर एक ऐसी मशीन है जो हार्डवेयर और सॉफ्टवेर से मिल कर बनी है, तो एक मशीन होने कि वजह से हमारे मन में एक बात हमेशा रहती है कि इसके किसी पार्ट के ख़राब होने, या विंडो के उड़ जाने से या फिर किसी वायरस के आ जाने से आपकी सारी जरुरी डाटा, आपकी फाइल, पारिवारिक फोटो न चली जाये, इसलिया आप अपनी बाहरी हार्ड डिस्क को एक बैकअप के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हो.

-    सुरक्षा : जब आपकी डाटा का आप बैकअप कर लेते हो तो इससे आपकी डाटा को सुरक्षा मिलती है, क्योकि अब आपकी डाटा को कोई खतरा नही होता, आप इसे संभाल कर अपने पास रख सकते है और जरूरत पड़ने पर अपने कंप्यूटर से जोड़ कर अपने काम को पूरा कर सकते हो.

-    पोर्टेबिलिटी : बाहरी हार्ड डिस्क से आपको अपने डाटा को अपने साथ कही भी ले जाने की सुविधा भी मिल जाती है, जैसे हम अपने स्कूल बैग में एक साथ कई सारी किताबो को ले जा सकते है, उसी तरह आप अपनी हार्ड डिस्क में एक ही साथ अलग अलग और बहुत सारा डाटा ले जा सकते हो. 

-    कीमत : क्योकि कंप्यूटर के छेत्र में लगातार प्रतियोगिता चलती रहती है तो इस कारण से कंप्यूटर के हिस्सों की कीमत दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है और इसी वजह से आपको अपनी बाहरी हार्ड डिस्क के लिए ज्यादा कीमत की जरूरत नही पड़ती. और ज्यादा कीमत के ना होने की वजह से ही बाहरी हार्ड डिस्क की मांग भी बहुत बड़ी है.

बाहरी हार्ड डिस्क का नुकसान

   कंप्यूटर के साथ जुड़ने वाली इस बाहरी हार्ड डिस्क के लाभ के साथ ही इसका एक नुकसान भी जुड़ा है. इसका छोटे और हल्का होना ही इसके नुकसान की वजह बना है क्योंकि इसे कोई भी आसानी से चुरा सकता है. इसलिए आपको इसको बहुत ही संभल कर रखने की जरूरत है.
 
हार्ड डिस्क क्या होती है